Jyotish
Saturday, July 16, 2011
गुरु प्रार्थना
गुरूब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः।
गुरूर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।
ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः पूजामलं गुरोः पदम्।
मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा।।
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव।।
ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं,
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् ।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं,
भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरूं तं नमामि ।।
हिन्दी में अर्थ....
1.गुरू ही ब्रह्मा हैं, गुरू ही विष्णु हैं।
गुरूदेव ही शिव हैं तथा गुरूदेव ही
साक्षात् साकार स्वरूप आदिब्रह्म हैं।
मैं उन्हीं गुरूदेव के नमस्कार करता हूँ।
2.ध्यान का आधार गुरू की मूरत है,
पूजा का आधार गुरू के श्रीचरण हैं,
गुरूदेव के श्रीमुख से निकले हुए वचन मंत्र के आधार हैं
तथा गुरू की कृपा ही मोक्ष का द्वार है।
3.जो सारे ब्रह्माण्ड में जड़ और चेतन सबमें व्याप्त हैं,
उन परम पिता के श्री चरणों को देखकर मैं उनको नमस्कार करता हूँ।
4.तुम ही माता हो,तुम ही पिता हो,
तुम ही बन्धु हो,तुम ही सखा हो,
तुम ही विद्या हो, तुम ही धन हो।
हे देवताओं के देव! सदगुरूदेव! तुम ही मेरा सब कुछ हो।
5.जो ब्रह्मानन्द स्वरूप हैं,
परम सुख देने वाले हैं,
जो केवल ज्ञानस्वरूप हैं,
(सुख-दुःख, शीत-उष्ण आदि) द्वंद्वों से रहित हैं,
आकाश के समान सूक्ष्म और सर्वव्यापक हैं,
तत्त्वमसि आदि महावाक्यों के लक्ष्यार्थ हैं,
एक हैं, नित्य हैं, मलरहित हैं, अचल हैं,
सर्व बुद्धियों के साक्षी हैं,
सत्त्व,रज,और तम तीनों गुणों के रहित हैं –
ऐसे श्री सदगुरूदेव को मैं नमस्कार करता हूँ।
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